सहारा

बौखला गया हूँ तेरी आरज़ू की कश्ती में 

क्या देखा ऐसा तूने मेरी बदनाम हस्ती में 

तेरी अनजान इश्क़ का मारा हूँ 

बस सिर्फ़ आशिक़ों का सहारा हूँ

मौसम

मौसम का हाल पूछते पूछते

रह गया बस उसे देखते

अरे वो तो निकल पड़ी 

और हम रह गए तरसते

मोहब्बत

मोहब्बत तो हो जाती है

पर इश्क़ करनी पड़ती है

दिल पर जो झोंका चला

दुआ करो तुम पर न बरसे

जवानी

ये जवानी के झोंके 

ख़ूब चलते है इन गलियों में

क्यूँ शक करते हो मेरी नज़रों पे

ज़रा इन्हें भी उड़ने दो इन कलियों में

मक़ाम

कभी इस मक़ाम की तमन्ना की 

तो कभी उस मक़ाम की

तुम्हारे तब्बससुम से जागी तमन्नाओं को 

किस मक़ाम पर क़ुर्बान करूँ ?

इंसानियत

आज इस नादाँ जहाँ में 

मक़ाम ज़्यादा रास्ते कम

और इंसानो की बस्ती में

ख्वाइशे ज़्यादा इंसानियत कम